झांसी- ललितपुर संसदीय क्षेत्र (ग्राउंड रिपोर्ट)
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कुमार भवानंद
झांसी।
झांसी- ललितपुर संसदीय सीट की दशा देख कर संत कबीर दास की पंक्ति ‘पानी
बिच मीन प्यासी... ’ की याद आ जाती है। इस बात को तर्क के आइने में देखें
तो यहां की धरा में अकूत प्राकृतिक संपदा है, दोहन भी होता है,
लेकिन इसका लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिल पाता है। यहां से कलकल बहने
वाली नदियां स्थानीय लोगों की प्यास बुझाने में विफल है। नहरों में पानी की
कोई कमी नहीं, लेकिन इस पानी का उपयोग यहां के किसान नहीं कर सकते।
नयनाभिराम प्राकृ तिक दृश्य व पुरातात्विक धरहरों के कारण पर्यटन हब बनने
के सभी गुण, फिर भी पर्यटकों की अपेक्षित भीड़ यहां नहीं जुटती। औद्योगिक
विकास की तमाम
संभावनाएं, फिर भी उद्यमियों का लगातार पलायन। और तो और हर दिन करीब डेढ़
सौ ट्रेनों को अपने सीने से गुजारने वाली इस मिट्टी के लोगों को अपने आसपास
जाने के लिए दूसरी पैसेंजर ट्रेन के लिए 19 घंटे की लंबी प्रतीक्षा। थर्मल
पावर प्लांट होने के बाद भी रात अंधेरे में गुजारने की मजबूरी। दद्दा
ध्यानचंद की कर्मस्थली में एस्ट्रो टर्फ बिछने की बात तो दूर हॉकी केलिए एक
अदद मैदान तक
नहीं।
देश निरंतर तरक्की के नए- नए आयाम को गढ़ रहा है, ऐसे में इस
क्षेत्र की दुर्दशा कम चौंकाने वाली नहीं है। दरअसल, इसकी इस दशा के लिए
राजनेता कम जिम्मेदार नहीं हैं। यहां की गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और पलायन
के नाम पर आठ- आठ आंसू बहाकर वोट बटोरने वालों ने कभी चुनाव जीतने के बाद
पलट कर नहीं देखा कि जिन आश्वासनों की पोटली थमा कर वह आगे बढ़े हैं,
उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी
भी उन्हीं की है। बात उपेक्षा की करें तो इस मामले में राष्ट्रीय दलों का
जितना दोष है, उससे कम क्षेत्रीय दलों का भी नहीं है। शिक्षाविद् जगदीश खरे
कहते हैं कि यहां के लोग हर दौर में छले जाते रहे हैं। अब तो लोग इसे अपनी
नियति मान बैठे हैं। कभी यहां की गरीबी और दुर्दशा को दूर करने केलिए
बुंदेलखंड विकास निगम का गठन किया जाता है तो कभी बुंदेलखंड विकास पैकेज
दिया जाता है, लेकिन
इसके हश्र पर कभी गौर नहीं किया गया।
बुंदेलखंड विकास पैकेज की घोषणा
के वक्त केंद्र की कांग्रेस सरकार और उसके स्थानीय नुमाइंदे केंद्रीय
ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने इसे कांग्रेस उपाध्यक्ष
राहुल गांधी की सौगात बता कर इस राशि से क्षेत्र की तस्वीर और यहां के
लोगों की तकदीर बदलने की बात कही थी, लेकिन चार वर्ष बाद भी यहां कोई
उल्लेखनीय बदलाव आया हो, यह
नहीं दिखता। आधे- अधूरे कुएं व चेकडेम और स्थल चयन के अभाव में अधर में
पड़े मंडियों के निर्माण को लेकर उठ रहे सवालों पर केंद्र और राज्य सरकार
एक- दूसरे के पाले में गेंद डालने के अलावा कुछ नहीं कर रही है। यानी, जनता
का हाथ अब भी उतना ही खाली है, जितना पहले हुआ करता था।
क्षेत्रीय
जनसमस्याओं के मुद्दे पर संघर्ष के कारण दो बार विधायक और फिर संसद की
दहलीज पार करने वाले क्षेत्रीय
सांसद प्रदीप जैन आदित्य अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में केंद्रीय कृ षि
विश्वविद्यालय, वैगन वर्कशाप का उन्नयन, महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज
का उच्चीकरण, ललितपुर में रेल नीर कारखाना व केंद्रीय विद्यालय, ललितपुर-
टीकमगढ़ रेलखंड का निर्माण, उदयपुर- खजुराहो इंटरसिटी सहित कई नई ट्रेनों
के संचालन व संसदीय क्षेत्र के विभिन्न स्टेशनों पर प्रमुख ट्रेनों का
ठहराव दिलाने
सहित कई बड़ी उपलब्धियों की चर्चा करते हैं। कुछ को छोड़ दें तो उनके खाते
की अधिकतर उपलब्धियां लोगों को नहीं दिख रही है। संभव है कि भविष्य में
केंद्र से स्वीकृत हुई उन योजनाओं का लाभ यहां के लोगों को मिले।
इस
चुनाव में प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले खुद को जनता के करीब बताने के लिए
‘सहज मुलाकात, सीधी बात’ के नारे के साथ मैदान में उतरे श्री जैन को इस
चुनाव में जनता के कुछ
तीखे और चुुभते सवालों का जवाब भी देना होगा। अलग बुंदेलखंड प्रांत के गठन
के लिए विधानसभा में आवाज बुलंद करने के बाद उन्होंने संसद में यह मांग
क्यों नहीं रखी? सत्ताधारी दल के सदस्य होने के नाते उनकी बात गंभीरता से
सुनी जाती। यह सवाल इसलिए भी गौर करने लायक है कि इस कार्यकाल में केंद्र
सरकार ने भारी विरोध के बाद भी राजनीतिक फायदे के लिए तेलंगाना को अलग
राज्य का दर्जा देने
में कोई हिचक नहीं दिखाई। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी होने
के कारण पहली बार सांसद बनने के बावजूद मंत्री पद पर विराजमान होने वाले
जैन भले ही अपने चुनावी पोस्टर में ‘आपके हर हक का तरफदार, पहले भी और आज
भी’ का दावा करते हों, लेकिन इस मुद्दे पर उनके पास बगलें झांकने के अलावा
शायद ही कोई चारा हो।
जन समस्याओं के मुद्दे पर मुखर रहने वाले प्रदीप
जैन के पक्ष
यह बात जा सकती है कि राज्य सरकार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने के कारण
वह अपने क्षेत्र के लोगों को कई सुविधाएं दिलाने में विफल रहे। पारीछा से
झांसी को 24 घंटे बिजली देने के मुद्दे पर उनके आंदोलन के बाद राज्य सरकार
ने आश्वासन तो दिया, लेकिन इसे लागू नहीं किया। संभव है कि सांसद के खाते
में उपलब्धियां जुड़ने का खौफ यहां तारी हो। बुंदेलखंड विकास पैकेज से
संचालित योजनाओं के
क्रियान्वयन का जिम्मा राज्य सरकार के पास था, पहले बसपा सरकार और फिर सपा
सरकार ने अपेक्षित रुचि नहीं दिखाई। नतीजा, आज भी बुंदेलखंड का यह हिस्सा
तमाम संसाधनों के बावजूद पिछड़ा है।
चुनावी समर के सूरमा
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प्रदीप
जैन आदित्य (कांग्रेस): झांसी नगर विधानसभा क्षेत्र से लगातार दो बार
विधायक चुने जाने के बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में सांसद बने। कांग्रेस
उपाध्यक्ष राहुल
गांधी के करीबी होने के कारण केंद्र सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री
बने।
तरकश के तीर
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लोगों से सहज मुलाकात और सुख- दुख
में साथ चलने के कारण केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद लोगों में आमआदमी की
छवि का उन्हें फायद मिल सकता है। साथ ही बुंदेलखंड विकास पैकेज समेत अन्य
उपलब्धियों के सहारे वह प्रतिद्वंद्वियों को मजबूत चुनौती देने में सक्षम।
उमा
भारती (भाजपा):
मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पिछले विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंडल
की चरखारी सीट से विधायक हैं। अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए कई बार विवादों से
भी घिरीं, लेकिन हर बार मजबूती के साथ उभर कर सामने आईं।
तरकश के तीर
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भाजपा
की फायर ब्रांड नेत्री अपनी राष्ट्रीय छवि के कारण अलग पहचान रखतीं हैं।
भाजपा के परंपरागत वोट बैंक उनकेसाथ है। इसके अलावा लोधी समुदाय का एक
मुश्त वोट उनकी झोली में गिर सकता है। चुुनाव में यह निर्णायक हो सकता है।
डॉ.
चन्द्रपाल सिंंह यादव (सपा): गरौठा क्षेत्र से एक बार विधायक रह चुके हैं।
2004 में लोकसभा की दहलीज पार कर चुके हैं। कृभको के उपाध्यक्ष हैं।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष होने के साथ- साथ मुलायम सिंह
यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं।
तरकश के तीर
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प्रदेश
की सपा सरकार की उपलब्धियों
को भुनाने की जुगत में हैं। इसके अलावा झांसी महानगर को बीटू श्रेणी का
दर्जा दिलाने के साथ-साथ सीपरी बाजार और मऊरानीपुर में ओवरब्रिज के लिए
शासन से स्वीकृति दिलाने में प्रमुख भूमिका रही है।
अनुराधा शर्मा
(बसपा): बहुजन समाज पार्टी के शासन काल में उत्तर प्रदेश समाज कल्याण बोर्ड
की सदस्य रह चुकीं हैं। औद्योगिक घराने से जुड़ी होने के साथ- साथ सामाजिक
गतिविधियों में भी
सक्रिय भागीदारी रही है। उनके पति दिवंगत पं रमेश शर्मा प्रदेश सरकार में
मंत्री रह चुके थे।
तरक श के तीर
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प्रदेश की
पूर्ववर्ती बसपा सरकार की उपलब्धियों के अलावा जातिगत समीकरण उनका सहारा
है। ब्राह्मण होने के कारण अपनी जाति के लोगों के वोट के अलावा बसपा के
परंपरागत वोट उनके लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं।
अर्चना गुप्ता
(आम आदमी पार्टी): लंबी अवधि से शैक्षणिक
गतिविधियों से जुड़ी हैं। नगर में आधा दर्जन स्कूलों का संचालन कर रहीं
हैं। अन्ना आंदोलन के दौरान सक्रिय राजनीति में उतरीं। समय- समय पर
जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर आंदोलन में हिस्सा लिया।
तरकश केतीर
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भ्रष्टाचार
मिटाने और महिला उत्पीड़न केविरोध के जरिए आम लोगों पर पकड़ बनाने का
प्रयास। वैश्य समुदाय की होने के कारण जातिगत समीकरण का सहारा। अरविंद
केजरीवाल
की छवि का लाभ मिलने की उम्मीद।
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आम आदमी की बात
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प्रकृति
ने इस क्षेत्र को अद्भुत छटा दी है। समय- समय पर बॉलीवुड ने विदेशी धरती
पर शूटिंग की जगह इसे तरजीह दी, लेकिन सरकार और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा
की वजह से यह क्षेत्र फिल्म हब में तब्दील नहीं हो पाया। सांसद और
विधायकों को उचित फोरम पर इसके लिए आवाज बुलंद करनी चाहिए। इससे इस क्षेत्र
की तस्वीर बदल सकती
है।
- आरिफ शहडौली, रंगकर्मी
औद्योगिक विकास के लिए यहां
ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए सांसद को तो पहल करनी ही होगी, राज्य
सरकार को भी उद्यमियों को उचित संरक्षण देना होगा। यह तभी संभव है जब
उपलब्धियों को अपने खाते में डालने की परवाह किए बगैर समग्र प्रयास हो।
- नारायण दास, बैंक कर्मी
2009 के चुनाव की स्थिति
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प्रदीप जैन आदित्य (कांग्रेस)- 2,52,712
पं. रमेश
कुमार शर्मा (बसपा)- 2,05,042
डॉ. चन्द्रपाल सिंह यादव (सपा)- 1,32,076
सुजान सिंह बुंदेला (रासद) - 1,05,264
रवींद्र शुक्ल (भाजपा)- 79,724