Monday, December 14, 2015

...Pal Pal ki Dosti

...Pal Pal ki Dosti ka Waada hai
Apna Pan Kuch itna ziyada hai
Na Sochna k Bhool Jayein gay Hum Aap ko
Jab Tak Zindagi hai Satane ka Full Irada Ha

689 वर्ष से जारी है मिथिला में विवाह पूर्व पंजीकरण




689 वर्ष से जारी है मिथिला में विवाह पूर्व पंजीकरण
सब हेड : मैथिल, श्रोत्रिय ब्राह्मण व कर्ण कायस्थ पंजीकारों से लेते हैं शादी से पहले अनुमति
पॉइंटर
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- पंजी में दर्ज वंशावली से तय होता वर-वधू पक्ष में नहीं है कोई सीधा संबंध
- माता पक्ष से छह और पिता पक्ष से सात पीढ़ी का अंतर जरूरी
- समान गुणसूत्र युक्त माता-पिता की संतति हो जाते रोगों के शिकार
- 1326 . से चली आ रही सिद्धांत (पंजीकरण) की परंपरा
- मिथिला नरेश महाराजा हरि सिंह देव ने शुरू कराई थी व्यवस्था
- सबसे पुरानी वंशावली मांड़र मूल के ब्राह्मणों का है पंजीबद्ध
- महान गणितज्ञ आर्यभट्ट भी हैं इसी मांड़र मूल (कश्यप गोत्र) के
- 450 . से 2009 तक जन्म लेने वालों की जानकारी से युक्त पुस्तक का प्रकाशन

कुमार भवानंद
मुजफ्फरपुर। आज भले ही विवाह से पूर्व एचआईवी/एड्स की जांच को लेकर वर-वधू पक्ष के लोग जागरूक दिखते हों, लेकिन मिथिला (उत्तर बिहार) निरोग संतान को लेकर पहले से ही सजग रहा है। विज्ञान बताता है कि समान गुणसूत्र (क्रोमोसोम) के माता-पिता की संतति आंख, चर्म, विकृतांग, रक्तदोष, मधुमेह, गठिया, चेहरे में विकृति व मानसिक रोगों के शिकार हो जाते हैं। अनजाने में ऐसी बीमारियों से युक्त संतान को जन्म देने से बचने के लिए इस क्षेत्र के मैथिल व श्रोत्रिय ब्राह्मण और कर्ण कायस्थ परिवार के बेटे-बेटियों का विवाह पिता पक्ष से सात और माता पक्ष से छह पीढ़ियों की दूरी होने पर ही तय होती है। इसका निर्धारण यहां के पंजीकार करते हैं, जिनके पास उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी पूरी जानकारी होती है। पंजीकार द्वारा सिद्धांत पत्र (रजिस्ट्रेशन) दिए जाने के बाद ही विवाह मंडप सजता है।

इस तरह शुरू हुई थी व्यवस्था
पंजीकार विद्यानंद झा (मोहनजी) के मुताबिक 1326 . में मिथिला के राजा महाराजा हरि सिंह देव कर्नाटवंशी ने अपने ही एक मंत्री के अनजाने में दूर के रिश्ते की बहन से हुई शादी को लेकर उठे विवाद के बाद तय किया कि हर व्यक्ति की वंशावली तैयार हो, ताकि ऐसी स्थिति पैदा ही न हो। महाराजा के आदेश पर मधुबनी जिले के जमसम (पंडौल) में विश्वचक्र सम्मेलन हुआ। पहले पंजीकार बने गुणाकर झा। अलग-अलग स्थानों के लोगों ने उन्हें अपने पूर्वजों के संबंध में जानकारी दी। सर्वाधिक जानकारी मिली मध्यप्रदेश से जुड़े कश्यप गोत्रीय मांड़र मूल के ब्राह्मणों की। महान गणितज्ञ आर्यभट्ट भी इसी मूल के थे। 

तिरहुताक्षर में लिखी पांडुलिपि से ग्रंथ तैयार
पहले पंजीकार गुणाकर झा के वंशज पूर्णिया निवासी पंजीकार विद्यानंद झा ने गजेंद्र ठाकुर और नागेंद्र कुमार झा के सहयोग से 450 . से 2009 तक मिथिला क्षेत्र के विभिन्न जिलों के ब्राह्मणों की वंशावली का वर्णन जीनियोलॉजिकल मैपिंग नामक पुस्तक में किया है। झा बताते हैं कि उनके पिता पंजीकार स्व. मोदानंद झा ने तिरहुता लिपि में लिखी पांडुलिपि उन्हें दी थी। समय के साथ पांडुलिपि खराब होने लगी थी। ऐसे में इतिहास मिटने का खतरा पैदा हो गया था। इसे देखते हुए उन्होंने अपने यजमानों (मिथिला के ब्राह्मणों) के आर्थिक सहयोग से इसे प्रकाशित करने का फैसला लिया।

पंजीकारों की लंबी फेहरिस्त है यहां
पंजीकार मोहनजी बताते हैं कि मिथिला में कई और पंजीकार भी हैं, खास कर दरभंगा और मधुबनी जिले में। सौराठ के कन्हैया जी, प्रो. शंकर दत्त मिश्र, विनोदानंद झा, ककरौल के शक्ति नंदन झा सहित कई अन्य भी सिद्धांत लिखते हैं। 

सौराठ में लगती है दूल्हों की सभा
मधुबनी जिले के सौराठ में आषाढ़ माह में लगने वाली दूल्हों की सभा में पंजीकारों की अहम भूमिका होती है। कई बार पंजीकार वर- वधू पक्ष के लोगों को सही जानकारी देकर संबंधों की बुनियाद डालने में उत्प्रेरक का काम करते हैं।

सौराठ सभा की यह थी पहचान
विवाह योग्य बिटिया के लिए योग्य वर की तलाश करने हर वर्ष अषाढ़ महीने में सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। पहले के मुकाबले यहां दूल्हों की वैसी भीड़ नहीं उमड़ती। दरअसल, कई बार झूठी जानकारी देकर विवाह करने का मामला सामने आने के कारण इस सभा का अब वैसा क्रेज नहीं रह गया है।

Sunday, November 8, 2015

उत्तर बिहार के वोटरों को झुनझुना समझने की भूल दिग्गजों पर पड़ी भारी


उत्तर बिहार के वोटरों को झुनझुना समझने की भूल दिग्गजों पर पड़ी भारी




दिग्गज रमई का 10 वी बार विधानसभा पहुंचने का सपना टूटा, मनोज भी मुंह के बल गिरे
-    चुनाव के मौके पर पाला बदलने वालों की भी झोली रही खाली
-    पूर्व मंत्री नीतीश मिश्रा को अति आत्मविश्वास ले डूबा

कुमार भवानंद
मुजफ्फरपुर। उत्तर बिहार के लोगों ने वोट के जरिए यह साफ कर दिया है कि वह सिर्फ झुनझुना नहीं हैं कि जब और जिस तरह उन्हें बजाया जा सकता है। अपनी उपेक्षा को वह बर्दाश्त नहीं कर सकते। यही वजह रही कि नीतीश सरकार के दो मंत्रियों को धूल चटाने में उन्होंने रत्ती भर भी संकोच नहीं किया, तो एनडीए को भी सबक सिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछली विधानसभा में भाजपा का प्रतिनिधित्व करने वाले कई विधायक पराजय झेलने को विवश हुए। वोटरों के तीखे मूड का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि बोचहां और कांटी में दलीय प्रत्याशियों की जगह उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशियों को तरजीह दी।
पराजय झेलने वाले नीतीश सरकार के दो मंत्रियों में से एक रमई राम अपने साढ़े चार दशक के चुनावी सफर में तीसरी बार पराजित हुए। नौ बार उन्होंने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। यह अलग बात है कि इस दौर में उन्होंने कई बार अपनी दलीय निष्ठा बदली। उनकी धमक का आकलन इससे होता था कि बोचहां से नामांकन करते ही लोग मान लेते थे कि रमई का रथ अब जीत के द्वार को वरण करने के बाद ही थमेगा। नीतीश के दूसरे मंत्री मनोज कुशवाहा भी अबकी मुंह के बल गिरे। लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके कुशवाहा ने 2010 के चुनाव से सबक नहीं लिया। तब वह महज 1.21फीसदी अधिक वोट पाकर जीतने में सफल रहे थे। बाजपट्‌टी से मंत्री रंजू गीता व सरायरंजन से मंत्री विजय कुमार चौधरी जरूर जीतने में सफल रहे। दोनों को ही अपने क्षेत्र में विकास परक योजना लाने का लाभ मिला।  नीतीश सरकार और फिर हम के हमसफर बन कर भाजपा के खाते से टिकट हासिल कर चुनाव लड़ने वाले पूर्व मंत्री नीतीश मिश्रा झंझारपुर से अपनी परंपरागत सीट को बचाने में विफल रहे। नीतीश मिश्रा को अति आत्मविश्वास यहां ले डूबा। जदयू से निकल कर हम का हाथ थामने वाले पूर्व मंत्री शाहिद अली खां भी सुरसंड के चुनावी जंग में मात खा गए। नीतीश सरकार में 2005 में मंत्री रह चुके हम प्रत्याशी निवर्तमान विधायक अजीत कुमार कांटी से अपनी सीट नहीं बचा पाए। यहां के लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशी अशोक कुमार चौधरी को विधानसभा पहुंचा कर एक तरह से अजीत को यह एहसास कराया है कि वह उनके पिछलग्गु बनने को तैयार नहीं हैं।       
चुनाव पूर्व माना जा रहा था कि यह इलाका एनडीए के मुफीद रहेगा, लेकिन चुनाव परिणाम इससे इतर रहा। मुजफ्फरपुर में बीजेपी की स्थिति मजबूत मानी जा रही थी, पर परिणाम कुछ और ही कह रहा है। मुजफ्फरपुर शहर और पारू सीट ही पार्टी बचा पाई। कुढ़नी के रूप में भाजपा के खाते में नई सीट आई, जबकि औराई और गायघाट सीट भाजपा के हाथ से निकल गई। ऐन चुनाव के मौके पर मीनापुर में जदयू से भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधायक दिनेश कुशवाहा के पुत्र अजय कुमार को मैदान में उतारना भाजपा को भारी पड़ा। वहीं, बरूराज में राजद का दामन छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए ब्रजकिशोर सिंह के पुत्र अरुण कुमार को टिकट देना भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं को नागवार गुजरा। नतीजा, वह हार गए।
पूरे चुनाव परिणाम पर गौर करें तो यह साफ हो गया है कि वोटरों का मिजाज ठीक- ठीक पढ़ने में हर दल विफल रहा।

Tuesday, May 20, 2014

सोशल इंजीनियरिंग फेल होने से हारीं अनुराधा


सोशल इंजीनियरिंग फेल होने से हारीं अनुराधा
सब हेड: ललितपुर और महरौनी में नहीं मिले अपेक्षित वोट
- तीसरी स्थान पर बसपा प्रत्याशी को करना पड़ा संतोष
- न ब्राह्मण और न दलित का मिला अपेक्षित साथ
 
कुमार भवानंद

झांसी। झांसी- ललितपुर संसदीय क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी अनुराधा शर्मा की हार का कारण पार्टी के सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले का फेल होना माना जा रहा है। जिस तरह भाजपा और सपा की झोली में वोट गिरे, वह साफ बताता है कि बसपा को न तो ब्राह्मणों का अपेक्षित साथ मिला और न ही पार्टी का वोट बैंक माने जाने वाले दलित वोटर बूथों तक पहुंचे।
यूं तो चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी प्रत्याशी ने पूरी ताकत झोंकी थी। प्रत्याशी ने गांव- गांव, गली- गली छान मारी थी। आश्वासन भी लोगों से खूब मिले, लेकिन बारी जब वोट डालने की आई तो उन्हें निराश ही किया। दरअसल, बसपा 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिले वोट से इस बात को लेकर आश्वस्त थी कि लोकसभा चुनाव में यह वोट उन्हें मिल गए और सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला कामयाब रहा तो जीत सुनिश्चित है। पार्टी सुप्रीमो मायावती ने यहां आयोजित चुनावी सभा में मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में डालने के लिए भाजपा की जीत का खौफ भी दिखाया, लेकिन परिणाम की घोषणा के बाद पूर्व के सभी आकलन गलत साबित हुए। ललितपुर और महरौनी में बसपा के विधायक होने के बावजूद पार्टी को इन दोनों ही स्थानों पर क्रमश: 42961 और 57767 वोट ही मिले। इन दोनों ही स्थानों पर पार्टी प्रत्याशी को झांसी, बबीना और मऊरानीपुर की तरह तीसरे स्थान पर ही संतोष करना पड़ा। सभी विधान सभा क्षेत्रों में मिले मत की गणना करें तो अनुराधा शर्मा को 2,13,792 मत से संतोष करना पड़ा। गौरतलब है कि 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा 2,05,042 वोट हासिल कर दूसरे स्थान पर रही थी। तब पार्टी प्रत्याशी अनुराधा शर्मा के पति स्व. रमेश कुमार शर्मा चुनाव मैदान में थे। 



तीन गुना बढ़ा समर्थन, फिर भी चंद्रपाल जीत से रहे दूर


तीन गुना बढ़ा समर्थन, फिर भी चंद्रपाल जीत से रहे दूर
सब हेड: 2009 के चुनाव में मिले थे 1,32,076 वोट, अबकी मिले 3,85,422
- महानगर को बी टू श्रेणी का दर्जा दिलाने में निभाई थी अहम भूमिका
- प्रदेश सरकार से मेडिकल कालेज के विस्तारीकरण के लिए दिलाया धन
- चिरलंबित सीपरी बाजार ओवर ब्रिज के निर्माण का रास्ता कराया साफ
कुमार भवानंद

झांसी। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी पूर्व सांसद डॉ. चन्द्रपाल सिंह यादव ने वर्ष 2009 में हुए चुनाव के मुकाबले इस बार लगभग तीन गुना अधिक वोट हासिल किये, लेकिन इस बार भी जीत का वरण नहीं कर सके। दूसरे नंबर पर ही उन्हें संतोष करना पड़ा।
सपा के राष्ट्र्रीय कोषाध्यक्ष डॉ. सिंह ने लोकसभा चुनाव को लेकर काफी पहले से तैयारियां शुरू कर दी थीं। इसके लिए वह लगातार क्षेत्र में भ्रमण कर रहे थे। आमलोगों में पैठ बनाने को हरसंभव प्रयास भी किया, लेकिन मोदी लहर ने उनकी चुनावी नैया को मंझधार से बाहर नहीं निकले दिया। 2012 में प्रदेश में सपा सरकार के गठन के बाद से वह लगातार क्षेत्र के विकास के लिए प्रदेश सरकार से योजनाएं व बजट ला रहे थे। इस क्रम में झांसी नगर की सड़कों के चौड़ीकरण के अलावा उन्होंने महानगर को बी टू श्रेणी का दर्जा दिलाने की चिरलंबित मांग भी पूरी कराई। इतना ही नहीं सीपरी बाजार में ओवरब्रिज के निर्माण के लिए बजट भी स्वीकृत कराया। इसके अलावा शासन से बुंदेलखंड क्षेत्र के एक मात्र मेडिकल कालेज पर मरीजों के भारी बोझ को देखते हुए पांच सौ बेड के विस्तारीकरण की योजना की स्वीकृति भी दिलाई। झांसी और ललितपुर जिले में कई अन्य योजनाओं की स्वीकृति दिलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। संभवत: यह एक बड़ी वजह रही कि वर्ष 2009 के चुनाव में 1,32,076 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे सपा प्रत्याशी डॉ. चंद्रपाल सिंह यादव इस बार लगभग तीन गुना 3,85,422 वोट हासिल करने में सफल रहे। लेकिन, नरेंद्र मोदी के नाम पर चली देश व्यापी आंधी ने उनके विजय रथ को बीच राह में ही रोक दिया।
 




उम्मीदों के बोझ तले दब गए प्रदीप जैन

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Tuesday, April 29, 2014

बस एक ही तमन्ना, झूठी उम्मीदों की सीढ़ियों पर न चढ़ाएं


झांसी- ललितपुर लोक सभा क्षेत्र (ग्राउंड जीरो)
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कुमार भवानंद
झांसी। 2009 में राष्ट्रीय मीडिया में घिसौली गांव अचानक सुर्खियों में छा गया था। दरअसल, कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इस गांव के दलितों के बीच पहुंच कर न केवल उन्हें विस्मित कर दिया था, बल्कि उनके घर के आंगन में रखी खाट पर बैठ कर उन्हीं लोगों के साथ भोजन भी किया था। गरीबी और भुखमरी के बीच जीने वाले इन लोगों के लिए तब यह नए सवेरे का संदेश था, लेकिन अब उनमें निराशा है। जिस जमुना के घर उन्होंने भोजन किया था, उसका कच्चा घर बारिश में गिर चुका है। पक्के मकान की उम्मीद बारिश में गिरे घर की तरह जमींदोज हो चुुकी है। रोजगार के अभाव में जमुना महुआ बीन कर इकट्ठा करता है, जबकि इस कड़क धूप में सुखाने का काम उसके वृद्ध पिता वृषभान करते हैं। राहुल के लिए खाना बनाने वाली जमुना की पड़ोसन साठ वर्षीया शांति इस बात से दुखी हैं कि उसका बेटा मूलचंद रोजगार के अभाव में खेतों पर काम करने को मजबूर है। वह कहतीं हैं उन जैसे गरीब लोगों को सपने ही क्यों दिखाए जाते हैं। बेहतर हो कि उन्हें ऐसी झूठी उम्मीदों की सीढ़ियों पर चढ़ाया ही न जाए। एक बार फिर उन्हें सब्जबाग दिखाने के लिए नेताओं की फौज उन तक पहुंचने लगी है। कोई उनके सपने को पूरा करने की बात कह रहा है तो कोई यह बताने की कोशिश कर रहा है कि इस बार उन्हें आजमा लो, वह उनके सपनों को पंख लगा देगा।
अपने जीवन के नब्बे वसंत देख चुके बबीना विधानसभा क्षेत्र में स्थित जौनपुर मजरा के वृद्ध जसरथ कहते हैं कि आजादी से पहले हम एक थे। उस समय के नेता हमें एक सूत्र में बांधते थे, लेकिन इस चुनाव में जीत के लिए हर दल के प्रत्याशी जात- पात का सहारा ले रहे हैं। हमारे गांव में मिश्रित आबादी है। हर जाति के नेता आते हैं और अपनी- अपनी जाति के लोगों को किसी खास प्रत्याशी के पक्ष में वोट डालने को कहते हैं। क्या इसी तरह हम लोकतंत्र की मजबूती की बात करेंगे? लाठी के सहारे बुढ़ापा काट रहे जसरथ के मुताबिक इस बार बदलाव की बयार है। हालांकि, वह यह कहने से नहीं चूकते कि सांसद कोई बने, रुपये का दस पैसा ही गरीबों के दरवाजे तक पहुंचेगा। उनकी इस बात पर किसान नाथू राम भी सिर हिला कर सहमति जताते दिखे, वहीं पंडिताई कर जीवन यापन करने वाले महेश तिवारी भी सहमत थे।
बात चली चुनावी बयार की तो हर दल को वे अपने- अपने तर्क से जय- पराजय की कसौटी पर कसते नजर आए। हां, उन्होंने यह कहने में कोई हिचक नहीं दिखाई कि भाजपा प्रत्याशी उमा भारती के मैदान में उतरने से इस बार का चुनाव न तो कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप जैन आदित्य के लिए आसान रह गया है और न ही सपा प्रत्याशी चन्द्रपाल सिंह और बसपा प्रत्याशी अनुराधा शर्मा के लिए। वह कहते हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप जैन आदित्य ने बबीना क्षेत्र में नहरों का जाल बिछवाने की योजना की स्वीकृति दिला दी है। लेकिन, जब तक धरातल पर नहरें नहीं खुदेंगी, लोग कैसे विश्वास कर लेंगे। बघौरा गांव के प्रकाश आदिवासी कहते हैं कि केंद्र में कांग्रेस के अलावा भाजपा और तीसरे मोर्चा की सरकार भी बन चुकी है। कांग्रेस और अन्य सरकारों में क्या अंतर रहा? हम जैसे तब पिछड़े थे, वैसे ही अब हैं। हालांकि, ललितपुर विधानसभा क्षेत्र में स्थित बिजरौठा गांव के युवाओं की टोली बेबाकी से कहती है कि केंद्र सरकार में बदलाव जरूरी है। मोनू चौबे कहते हैं कि महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी दूर करने के मामले में कांग्रेस ने निराश किया है। एक बार भाजपा को मौका दिया जाना चाहिए। वहीं, कुछ युवाओं का कहना था कि बसपा को अच्छी सीट आई तो केंद्र में किंग मेकर की भूमिका में पार्टी आ सकती है। ऐसे में यूपी में विकास के लिए पार्टी दबाव बना सकती है। बिजरौठा स्टैंड के पास मिले श्यामू कहते हैं कि समाजवादी पार्टी ने इस बार प्रदेश में जिस तरह विकास परक योजनाओं का संचालन किया है, उससे केंद्र में यदि पार्टी के प्रत्याशी जीत कर जाएंगे तो विकास की गाड़ी और तेजी से दौड़ेगी। वहीं, पहली बार वोटर बने झांसी विधानसभा क्षेत्र के रवि कुमार हों या मऊरानीपुर क्षेत्र के अशोक, वह चाहते हैं कि चुनाव कोई जीते, इस क्षेत्र का विकास होना चाहिए।
बहरहाल, ऊंट किस करवट बैठेगा यह फैसला 30 अप्रैल को मतदाता करेंगे, लेकिन इतना तय है कि इस चुनाव में जीत की राह किसी के लिए आसान नहीं होगी।
 
 
उमा ने चुनाव को लाया लाइमलाइट में
झांसी। अपनी बेबाक टिप्पणी के कारण सुर्खियों में रहने वाली भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष उमा भारती ने इस बार झांसी- ललितपुर संसदीय सीट को भी लाइमलाइट में ला दिया है। उनके मैदान में उतरने से भाजपा के लिए यह सीट कितनी महत्वपूर्ण हो गई है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले वर्ष 25 अक्तूबर को विजय शंखनाद रैली करने वाले पार्टी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी चुनावी सभा के लिए एक बार फिर झांसी आ रहे हैं। इतना ही नहीं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह मऊरानीपुर क्षेत्र में चुनावी सभा कर चुके हैं।
स्थिति यह है कि लगभग हर प्रत्याशी और उनके समर्थक यह बताने में संकोच नहीं करते कि उनका मुकाबला भाजपा से है। अब तक बसपा जिस अलग बुंदेलखंड राज्य के मुद्दे को अपना बता कर इस क्षेत्र के लोगों को रिझाने में जुटी थी, उसे भी भाजपा ने हाईजेक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह कहतीं हैं कि केंद्र में मोदी की सरकार बन गई तो तीन साल के भीतर वह अलग बुंदेलखंड का राज्य बनवा देंगी। हालांकि, पिछले दिनों बसपा प्रत्याशी अनुराधा शर्मा के पक्ष में चुनावी सभा को संबोधित करने आईं बसपा सुप्रीमो मायावती ने उनके इस दावे की यह कह कर हवा निकालने की कोशिश की कि इसके लिए उन्होंने अपने सरकार के कार्यकाल में विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर लोकसभा को भेज दिया था। इस मुद्दे पर बसपा बेहद गंभीर है। केंद्र में पावर आफ बैलेंस की स्थिति में बसपा अपने इस मुद्दे पर आगे भी प्रयत्न करेगी। वहीं, प्रदीप जैन आदित्य लगातार दुहरा रहे हैं कि अलग बुंदेलखंड राज्य उनके एजेंडे में पहले से ही है। वहीं, सपा प्रत्याशी चंद्रपाल सिंह यादव पृथक राज्य की जगह विकास को तरजीह दे रहे हैं।
बोले प्रत्याशी
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भाजपा से है मुकाबला: प्रदीप
झांसी। कांग्रेस प्रत्याशी व केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन आदित्य कहते हैं कि इस चुनाव में भाजपा से उनका सीधा मुकाबला है। अन्य दलों के प्रत्याशी तो दूर- दूर तक उनके करीब नहीं हैं। अपनी जीत के दावे में वह कहते हैं कि किसी भी जनप्रतिनिधि से लोग क्या उम्मीद रखते हैं - विकास और सुख- दुख में उसके साथ खड़ा रहने वाला हो। वह सदैव अपने क्षेत्र के विकास में जुटे रहे। मेडिकल कालेज का उन्नयन, कृषि विश्वविद्यालय, रेल कोच कारखाना जैसे बड़े- बड़े प्रोजेक्ट उन्होंने यहां लाये। बबीना क्षेत्र में नहर की योजना भी उनके ही प्रयास से धरातल पर उतरने वाली है।
मेरा किसी से मुकाबला नहीं: उमा
इस चुनाव में उनका किसी प्रत्याशी से कोई मुकाबला नहीं है। वह विचारों की लड़ाई लड़ रहीं हैं। प्रदेश में पूर्व में सत्ता में रही बसपा का भ्रष्टाचार, कांग्रेस और सपा का कुशासन ही उनकी जीत को सुनिश्चित कर रहा है। चुनाव जीतने के बाद झांसी क्षेत्र का सर्वांगीण विकास उनका एकमात्र उद्देश्य है। इस पर वह हर हाल में खरी उतरेंगी।
चंद्रपाल भी भाजपा को मानते मुख्य प्रतिद्वंद्वी
सपा प्रत्याशी डॉ चन्द्रपाल सिंह मानते हैं कि इस चुनाव में उमा भारती ही उन्हें टक्कर दे रहीं हैं। कांग्रेस को वह जीत से कोसों दूर बताते हैं, वहीं कहते हैं कि बसपा प्रत्याशी को कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है। प्रदेश की सपा सरकार के अच्छे कार्य उनकी जीत की राह को प्रशस्त करेंगे। उनका कहना है कि महानगर को बी टू का दर्जा, पैरा मेडिकल कालेज, सीपरी बाजार ओवरब्रिज, मेडिकल कालेज में पांच सौ बेड का नया अस्पताल उनके ही प्रयासों से संभव हो पाया है।
जनता उनके साथ, दूर- दूर तक कोई नहीं: अनुराधा
बसपा प्रत्याशी अनुराधा शर्मा कहती हैं कि इस चुनाव में उनके मुकाबले कोई प्रत्याशी नहीं है। वह जात-पात की राजनीति नहीं करतीं हैं। विकास उनका एकमात्र उद्देश्य है। उनके पति स्व. पं रमेश शर्मा ने अपने मंत्रित्व काल में इस क्षेत्र के लिए कई कार्य किए। वह भी इसे आगे बढ़ाएंगी। मायावती सरकार के सुशासन को लोग याद कर रहे हैं। बसपा की जोरदार जीत होगी।

Saturday, April 19, 2014

अकूत संपदा, फिर भी गरीबी

झांसी- ललितपुर संसदीय क्षेत्र (ग्राउंड रिपोर्ट)
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कुमार भवानंद
झांसी। झांसी- ललितपुर संसदीय सीट की दशा देख कर संत कबीर दास की पंक्ति ‘पानी बिच मीन प्यासी... ’ की याद आ जाती है। इस बात को तर्क के आइने में देखें तो यहां की धरा में अकूत प्राकृतिक संपदा है, दोहन भी होता है, लेकिन इसका लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिल पाता है। यहां से कलकल बहने वाली नदियां स्थानीय लोगों की प्यास बुझाने में विफल है। नहरों में पानी की कोई कमी नहीं, लेकिन इस पानी का उपयोग यहां के किसान नहीं कर सकते। नयनाभिराम प्राकृ तिक दृश्य व पुरातात्विक धरहरों के कारण पर्यटन हब बनने के  सभी गुण, फिर भी पर्यटकों की अपेक्षित भीड़ यहां नहीं जुटती। औद्योगिक विकास की तमाम संभावनाएं, फिर भी उद्यमियों का लगातार पलायन। और तो और हर दिन करीब डेढ़ सौ ट्रेनों को अपने सीने से गुजारने वाली इस मिट्टी के लोगों को अपने आसपास जाने के लिए दूसरी पैसेंजर ट्रेन के लिए 19 घंटे की लंबी प्रतीक्षा। थर्मल पावर प्लांट होने के बाद भी रात अंधेरे में गुजारने की मजबूरी। दद्दा ध्यानचंद की कर्मस्थली में एस्ट्रो टर्फ बिछने की बात तो दूर हॉकी केलिए एक अदद मैदान तक नहीं।
देश निरंतर तरक्की के नए- नए आयाम को गढ़ रहा है, ऐसे में इस क्षेत्र की दुर्दशा कम चौंकाने वाली नहीं है। दरअसल, इसकी इस दशा के लिए राजनेता कम जिम्मेदार नहीं हैं। यहां की गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और पलायन के नाम पर आठ- आठ आंसू बहाकर वोट बटोरने वालों ने कभी चुनाव जीतने के बाद पलट कर नहीं देखा कि जिन आश्वासनों की पोटली थमा कर वह आगे बढ़े हैं, उन्हें पूरा करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। बात उपेक्षा की करें तो इस मामले में राष्ट्रीय दलों का जितना दोष है, उससे कम क्षेत्रीय दलों का भी नहीं है। शिक्षाविद् जगदीश खरे कहते हैं कि यहां के लोग हर दौर में छले जाते रहे हैं। अब तो लोग इसे अपनी नियति मान बैठे हैं। कभी यहां की गरीबी और दुर्दशा को दूर करने केलिए बुंदेलखंड विकास निगम का गठन किया जाता है तो कभी बुंदेलखंड विकास पैकेज दिया जाता है, लेकिन इसके  हश्र पर कभी गौर नहीं किया गया।
बुंदेलखंड विकास पैकेज की घोषणा के वक्त केंद्र की कांग्रेस सरकार और उसके स्थानीय नुमाइंदे केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने इसे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सौगात बता कर इस राशि से क्षेत्र की तस्वीर और यहां के लोगों की तकदीर बदलने की बात कही थी, लेकिन चार वर्ष बाद भी यहां कोई उल्लेखनीय बदलाव आया हो, यह नहीं दिखता। आधे- अधूरे कुएं व चेकडेम और स्थल चयन के अभाव में अधर में पड़े मंडियों के निर्माण को लेकर उठ रहे सवालों पर केंद्र और राज्य सरकार एक- दूसरे के पाले में गेंद डालने के अलावा कुछ नहीं कर रही है। यानी, जनता का हाथ अब भी उतना ही खाली है, जितना पहले हुआ करता था।
क्षेत्रीय जनसमस्याओं के मुद्दे पर संघर्ष के कारण दो बार विधायक और फिर संसद की दहलीज पार करने वाले क्षेत्रीय सांसद प्रदीप जैन आदित्य अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में केंद्रीय कृ षि विश्वविद्यालय, वैगन वर्कशाप का उन्नयन, महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कालेज का उच्चीकरण, ललितपुर में रेल नीर कारखाना व केंद्रीय विद्यालय, ललितपुर- टीकमगढ़ रेलखंड का निर्माण, उदयपुर- खजुराहो इंटरसिटी सहित कई नई ट्रेनों के संचालन व संसदीय क्षेत्र के विभिन्न स्टेशनों पर प्रमुख ट्रेनों का ठहराव दिलाने सहित कई बड़ी उपलब्धियों की चर्चा करते हैं। कुछ को छोड़ दें तो उनके खाते की अधिकतर उपलब्धियां  लोगों को नहीं दिख रही है। संभव है कि भविष्य में केंद्र से स्वीकृत हुई उन योजनाओं का लाभ यहां के लोगों को मिले।
इस चुनाव में प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले खुद को जनता के करीब बताने के लिए ‘सहज मुलाकात, सीधी बात’ के नारे के  साथ मैदान में उतरे श्री जैन को इस चुनाव में जनता के कुछ तीखे और चुुभते सवालों का जवाब भी देना होगा। अलग बुंदेलखंड प्रांत के गठन के लिए विधानसभा में आवाज बुलंद करने के बाद उन्होंने संसद में यह मांग क्यों नहीं रखी? सत्ताधारी दल के सदस्य होने के नाते उनकी बात गंभीरता से सुनी जाती। यह सवाल इसलिए भी गौर करने लायक है कि इस कार्यकाल में केंद्र सरकार ने भारी विरोध के बाद भी राजनीतिक फायदे के लिए तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने में कोई हिचक  नहीं दिखाई।  कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी होने के कारण पहली बार सांसद बनने के बावजूद मंत्री पद पर विराजमान होने वाले जैन भले ही अपने चुनावी पोस्टर  में ‘आपके हर हक का तरफदार, पहले भी और आज भी’ का दावा करते हों, लेकिन इस मुद्दे पर उनके पास  बगलें झांकने के अलावा शायद ही कोई चारा हो।
जन समस्याओं के मुद्दे पर मुखर रहने वाले प्रदीप जैन के पक्ष यह बात जा सकती है कि राज्य सरकार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने के कारण वह अपने क्षेत्र के लोगों को कई सुविधाएं दिलाने में विफल रहे। पारीछा से झांसी को 24 घंटे बिजली देने के मुद्दे पर उनके आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने आश्वासन तो दिया, लेकिन इसे लागू नहीं किया। संभव है कि सांसद के खाते में उपलब्धियां जुड़ने का खौफ यहां तारी हो। बुंदेलखंड विकास  पैकेज से संचालित योजनाओं के क्रियान्वयन का जिम्मा राज्य सरकार के पास था, पहले बसपा सरकार और फिर सपा सरकार ने अपेक्षित रुचि नहीं दिखाई। नतीजा, आज भी बुंदेलखंड का यह हिस्सा तमाम संसाधनों के बावजूद पिछड़ा है।


चुनावी समर के सूरमा
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प्रदीप जैन आदित्य (कांग्रेस): झांसी नगर विधानसभा क्षेत्र से लगातार दो बार विधायक चुने जाने के बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में सांसद बने। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी होने के कारण केंद्र सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री बने।
तरकश के तीर
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लोगों से सहज मुलाकात और सुख- दुख में साथ चलने के कारण केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद लोगों में आमआदमी की छवि का उन्हें फायद मिल सकता है। साथ ही बुंदेलखंड विकास पैकेज समेत अन्य उपलब्धियों के सहारे वह प्रतिद्वंद्वियों को मजबूत चुनौती देने में सक्षम।


उमा भारती (भाजपा): मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व पिछले विधानसभा चुनाव में बुंदेलखंडल की चरखारी सीट से विधायक हैं। अपनी बेबाक टिप्पणी के लिए कई बार विवादों से भी घिरीं, लेकिन हर बार मजबूती के साथ उभर कर सामने आईं।

तरकश के तीर
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 भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री अपनी राष्ट्रीय छवि के कारण अलग पहचान रखतीं हैं। भाजपा के परंपरागत वोट बैंक उनकेसाथ है। इसके अलावा लोधी समुदाय का एक मुश्त वोट उनकी झोली में गिर सकता है। चुुनाव में यह निर्णायक हो सकता है।

डॉ. चन्द्रपाल सिंंह यादव (सपा): गरौठा क्षेत्र से एक बार विधायक रह चुके हैं। 2004 में लोकसभा की दहलीज पार कर चुके हैं। कृभको के उपाध्यक्ष हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष होने के साथ- साथ मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं।
तरकश के तीर
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प्रदेश की सपा सरकार की उपलब्धियों को भुनाने की जुगत में हैं। इसके अलावा झांसी महानगर को बीटू श्रेणी का दर्जा दिलाने के साथ-साथ सीपरी बाजार और मऊरानीपुर में ओवरब्रिज के लिए शासन से स्वीकृति दिलाने में प्रमुख भूमिका रही है।

अनुराधा शर्मा (बसपा): बहुजन समाज पार्टी के शासन काल में उत्तर प्रदेश समाज कल्याण बोर्ड की सदस्य रह चुकीं हैं। औद्योगिक घराने से जुड़ी होने के साथ- साथ सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके पति दिवंगत पं रमेश शर्मा प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके थे।

तरक श के तीर
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प्रदेश की पूर्ववर्ती बसपा सरकार की उपलब्धियों के अलावा जातिगत समीकरण उनका सहारा है। ब्राह्मण होने के कारण अपनी जाति के लोगों के वोट के अलावा बसपा के परंपरागत वोट उनके लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं।

अर्चना गुप्ता (आम आदमी पार्टी):  लंबी अवधि से शैक्षणिक गतिविधियों से जुड़ी हैं। नगर में आधा दर्जन स्कूलों का संचालन कर रहीं हैं। अन्ना आंदोलन के दौरान सक्रिय राजनीति में उतरीं। समय- समय पर जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर आंदोलन में हिस्सा लिया।

तरकश केतीर
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भ्रष्टाचार मिटाने और महिला उत्पीड़न केविरोध के जरिए आम लोगों पर पकड़ बनाने का प्रयास। वैश्य समुदाय की होने के कारण जातिगत समीकरण का सहारा।  अरविंद केजरीवाल की छवि का लाभ मिलने की उम्मीद।
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आम आदमी की बात
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प्रकृति ने इस क्षेत्र को अद्भुत छटा दी है। समय- समय पर बॉलीवुड ने विदेशी धरती पर शूटिंग की जगह इसे तरजीह दी, लेकिन सरकार और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा की वजह से यह क्षेत्र फिल्म हब में तब्दील नहीं हो पाया। सांसद  और विधायकों को उचित फोरम पर इसके लिए आवाज बुलंद करनी चाहिए। इससे इस क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती है।
- आरिफ शहडौली, रंगकर्मी


औद्योगिक विकास के लिए यहां ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए सांसद को तो पहल करनी ही होगी, राज्य सरकार को भी उद्यमियों को उचित संरक्षण देना होगा। यह तभी संभव है जब उपलब्धियों को अपने खाते में डालने की परवाह किए बगैर समग्र प्रयास हो।
- नारायण दास, बैंक कर्मी

2009 के चुनाव की स्थिति
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 प्रदीप जैन आदित्य (कांग्रेस)- 2,52,712
पं. रमेश कुमार शर्मा (बसपा)- 2,05,042
डॉ. चन्द्रपाल सिंह यादव (सपा)- 1,32,076
सुजान सिंह बुंदेला (रासद) - 1,05,264
रवींद्र शुक्ल (भाजपा)-  79,724